- जीवन में उपयोगी नियम
जीवन में उपयोगी नियम
जीवन में कुछ नियमों का पालन करना न केवल हमारे व्यक्तिगत स्वास्थ्य और स्वच्छता के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि हमारे सामाजिक और मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है। यहां कुछ महत्वपूर्ण नियम दिए गए हैं जो आपके जीवन को सकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकते हैं:
1. स्वच्छता और स्वास्थ्य
- परिसर की स्वच्छता: जहाँ रहते हैं, उस स्थान को और उसके आस-पास की जगह को साफ रखें। स्वच्छ वातावरण स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है और मानसिक शांति भी प्रदान करता है।
- नाखून की देखभाल: हाथ-पैर के नाखून बढ़ने पर नियमित रूप से काटते रहें। नख बढ़े हुए और मैल भरे हुए नहीं रखने चाहिए। यह व्यक्तिगत स्वच्छता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
- बाल कटवाने के दिन: बाल कटवाने के लिए शुभ और अशुभ दिन होते हैं। बुधवार और शुक्रवार के अतिरिक्त अन्य दिनों में बाल कटवाना उचित नहीं है। सोमवार, मंगलवार, गुरूवार, शनिवार और रविवार को बाल कटवाने से विभिन्न प्रकार की हानि हो सकती है। बुधवार और शुक्रवार को बाल कटवाना धन और यश की प्राप्ति कराता है।
- तेल लगाने के दिन: सोमवार, बुधवार और शनिवार को शरीर में तेल लगाना उत्तम है। यह ग्रहों के अनिष्टकर प्रभाव से बचाता है। तेल लगाते समय पहले नाभि और हाथ-पैर की उँगलियों के नखों में भली प्रकार तेल लगाना चाहिए।
- पैरों की देखभाल: पैरों को यथासंभव खुला रखें। प्रातःकाल कुछ समय तक हरी घास पर नंगे पैर टहलना स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है। गर्मियों में मोजे आदि से पैरों को नहीं ढंकना चाहिए।
- जूते और कपड़े: ऊँची एड़ी के या तंग पंजों के जूते स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं। बहुत कसे हुए और नायलॉन जैसे कृत्रिम तंतुओं से बने कपड़े और चटकीले भड़कीले गहरे रंग के कपड़े स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं। ढीले-ढाले सूती वस्त्र स्वास्थ्य के लिए अति उत्तम होते हैं।
- पाउडर और सौंदर्य प्रसाधन: पाउडर और स्नो आदि त्वचा के स्वाभाविक सौंदर्य को नष्ट करके उसे रूखा और कुरूप बना देते हैं। प्राकृतिक सुंदरता बनाए रखने के लिए इनका कम से कम प्रयोग करना चाहिए।
- विश्राम के नियम: कहीं से चलकर आने पर तुरंत जल नहीं पीना चाहिए, हाथ-पैर नहीं धोने चाहिए और न ही स्नान करना चाहिए। पहले पसीना सूखने दें, फिर कम-से-कम 15 मिनट विश्राम करें, इसके बाद ही हाथ-पैर धोकर और कुल्ला करके पानी पिएं। तेज गर्मी में थोड़ा गुड़ या मिश्री खाकर पानी पिएं ताकि लू न लगे।
2. सामाजिक और नैतिक आचरण
- अच्छे साथियों का चयन: अच्छे लोगों के साथ रहो और बुरे लोगों का साथ छोड़ो। तुम जैसे लोगों के साथ उठते-बैठते हो, लोग तुम्हें भी वैसा ही समझते हैं। जो लोग बुरे कहे जाते हैं, भले ही उनमें तुम्हें दोष न भी दिखें, तो भी उनका साथ मत करो।
- प्रत्येक काम सावधानी से करो: किसी भी काम को छोटा समझकर उसकी उपेक्षा न करो। प्रत्येक काम ठीक समय पर करो। पढ़ने में मन लगाओ। केवल परीक्षा में उत्तीर्ण होने के लिए नहीं, अपितु ज्ञानवृद्धि के लिए पूरी पढ़ाई करो। जो कुछ पढ़ो, उसे समझने की चेष्टा करो। जो तुमसे श्रेष्ठ है, उनसे पूछने में संकोच मत करो।
- दीन-हीन और असहायों की मदद: दीन-हीन तथा असहायों और ज़रूरतमंदों की जितनी भी सहायता और सेवा कर सकते हो, उसे अवश्य करो, पर दूसरों से तब तक कोई सेवा न लो जब तक तुम सक्षम हो। किसी की उपेक्षा मत करो।
- सहानुभूतिपूर्वक व्यवहार: अंधे, काने-कुबड़े, लूले-लँगड़े आदि को कभी चिढ़ाओ मत, बल्कि उनके साथ और ज़्यादा सहानुभूतिपूर्वक बर्ताव करो।
- भटके हुए राही को मार्ग बताना: यदि किसी को मार्ग नहीं पता हो तो उचित मार्ग बताना चाहिए।
- पत्र और वस्तुओं का सम्मान: किसी के नाम आए हुए पत्र मत पढ़ो। किसी के घर जाओ तो उसकी वस्तुओं को मत छुओ। यदि आवश्यक हो तो पूछकर ही छुओ। काम हो जाने पर उस वस्तु को फिर यथास्थान रख दो।
- सार्वजनिक स्थानों की स्वच्छता: बस, रेल के डिब्बे, धर्मशाला, मंदिर आदि में गंदगी न करो। वहाँ के नियमों का पालन करो।
- सड़क पर चलने के नियम: हमेशा सड़क की बायीं ओर से चलो। दाहिनी ओर थूको नहीं। मार्ग में खड़े होकर बातें मत करो। बात करनी हो तो एक किनारे हो जाओ। बुजुर्गों के आने पर बगल हो जाओ। मार्ग में काँटे, काँच के टुकड़े या कंकड़ हों तो उन्हें हटा दो।
- झंडे, राष्ट्रगीत और धर्मग्रंथों का सम्मान: किसी भी देश या जाति के झंडे, राष्ट्रगीत, धर्मग्रंथों तथा महापुरुषों का अपमान कभी मत करो। उनके प्रति आदर रखो। किसी धर्म पर आक्षेप मत करो।
- बीमार और मुसीबत में पड़े लोगों की सहायता: कोई परिचित, पड़ोसी, मित्र आदि बीमार हो या मुसीबत में हो तो उसकी सहायता और तसल्ली देनी चाहिए।
- अतिथि सत्कार: यदि किसी के यहाँ अतिथि बनो, तो यह सुनिश्चित करो कि उस घर के लोगों को तुम्हारे लिए कोई विशेष प्रबंध न करना पड़े। उनके यहाँ जो भी भोजन या व्यवस्था मिले, उसे सराहना और कृतज्ञता के साथ स्वीकार करो।
- जल और बिजली की बचत: पानी व्यर्थ में मत गिराओ। पानी का नल और बिजली की रोशनी अनावश्यक खुली मत रहने दो।
- सामान का सही उपयोग: चाकू से मेज मत खरोंचो। पेन्सिल या पेन से इधर-उधर दाग मत करो। दीवार पर मत लिखो।
- पुस्तकों का आदर: पुस्तकें खुली छोड़कर मत जाओ। पुस्तकों पर पैर मत रखो और न उनसे तकिए का काम लो। धर्मग्रंथों को विशेष आदर करते हुए स्वयं शुद्ध, पवित्र और स्वच्छ होने पर ही उन्हें स्पर्श करो। उँगली में थूक लगाकर पुस्तकों के पृष्ठ मत पलटो।
- अनुचित आदतें छोड़ें: हाथ-पैर से भूमि कुरेदना, तिनके तोड़ना, बार-बार सिर पर हाथ फेरना, बटन टटोलते रहना, वस्त्र के छोर उमेठते रहना, झूमना, उँगलियाँ चटखाते रहना- ये बुरे स्वभाव के चिह्न हैं।
- स्वास्थ्यकर आदतें अपनाएं: मुख में उँगली, पेन्सिल, चाकू, पिन, सुई, चाबी या वस्त्र का छोर देना, नाक में उँगली डालना, हाथ से या दाँत से तिनके नोचते रहना, दाँत से नख काटना, भौंहों को नोचते रहना- ये गंदी आदते हैं। इन्हें यथाशीघ्र छोड़ देना चाहिए।
- स्वच्छता बनाए रखें: पीने के पानी या दूध आदि में उँगली मत डुबाओ।
- उचित स्थान का सम्मान: अपने से श्रेष्ठ, अपने से नीचे व्यक्तियों की शय्या-आसन पर न बैठो।
- निंदा और परिहास से बचें: देवता, वेद, द्विज, साधु, सच्चे महात्मा, गुरु, पतिव्रता, यज्ञकर्ता, तपस्वी आदि की निंदा-परिहास न करो और न सुनो।
- अशुभ वेश और वचन से बचें: अशुभ वेश न धारण करो और न ही मुख से अमांगलिक वचन बोलो।
- सत्य और संकल्प: कोई बात बिना समझे मत बोलो। जब तुम्हें किसी बात की सच्चाई का पूरा पता हो, तभी उसे करो। अपनी बात के पक्के रहो। जिसे जो वचन दो, उसे पूरा करो। किसी से जिस समय मिलने का या जो कुछ काम करने का वादा किया हो वह वादा समय पर पूरा करो। उसमें विलंब मत करो।
3. व्यक्तिगत विकास और स्वास्थ्य
- नियमित प्रार्थना: नियमित रूप से भगवान की प्रार्थना करो। प्रार्थना से जितना मनोबल प्राप्त होता है उतना और किसी उपाय से नहीं होता।
- संतुष्टि और प्रसन्नता: सदा संतुष्ट और प्रसन्न रहो। दूसरों की वस्तुओं को देखकर ललचाओ मत।
- नेत्रों की रक्षा: नेत्रों की रक्षा के लिए न बहुत तेज प्रकाश में पढ़ो, न बहुत मंद प्रकाश में। दोनों हानिकारक हैं। इस प्रकार भी नहीं पढ़ना चाहिए कि प्रकाश सीधे पुस्तक के पृष्ठों पर पड़े। लेटकर, झुककर या पुस्तक को नेत्रों के बहुत नज़दीक लाकर नहीं पढ़ना चाहिए।
- सादा भोजन और रहन-सहन: जितना सादा भोजन और सादा रहन-सहन रखोगे, उतने ही स्वस्थ रहोगे। फैशन की वस्तुओं का जितना उपयोग करोगे या जिह्वा के स्वाद में जितना फँसोगे, स्वास्थ्य उतना ही दुर्बल होता जाएगा।
इन नियमों का पालन करके आप अपने जीवन को स्वस्थ, सुखी और संतुलित बना सकते हैं। ये नियम व्यक्तिगत, सामाजिक और नैतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं और इनका पालन जीवन को अधिक सार्थक और पूर्ण बनाता है।